झारखंड में सरना जनजातियों के लिए एक अलग धर्म बनाने की मांग फिर से सुर्खियों में आ गई है. लंबे समय से जनजातिय द्वारा मांग की जा रही ‘सरना कोड’ की मांग जोरो-शोरो से हो रही है, जिसका उद्देश्य आदिवासी धर्म ‘सरना धर्म’ को भारत में एक अलग पहचान दिलाना है. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने 19 मई को ‘सरना कोड’ की मांग को लेकर राज्यव्यापी प्रदर्शन के लिए 27 मई की तिथि घोषित की है. लंबे समय से जेएमएम की सरकार सरना को अलग धर्म की पहचान दिलाने के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही हैं. आइए समझते हैं क्या है सरना जनजाति और क्यों इसे अलग धर्म बनाने की मांग की जा रही है?
कौन करता है सरना का पालन?
जनजातीय समुदाय के लोग जो हिंदू, इस्लाम या ईसाई आदि धर्मों को मानने के बजाय वे सरना मान्यता का अनुसरण करते हैं. ईसाई मिशनरियों समेत अन्य धर्मों के मानने वालों के कड़े विरोध के बावजूद सरना का पालन करने वाले लोग आज भी मजबूती से अपने विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराओं से जुड़े हुए हैं. ये लोग प्रकृति के उपासक होते हैं.
क्या है सरना धर्म कोड?
सरना धर्म जनजातिय समुदायों द्वारा पालन किया जाने वाला एक प्रचीन धर्म है. इसमें लोग किसी मूर्ति की नहीं, बल्कि प्रकृति की पूजा करते हैं और यह प्रकृति प्रेमी होते हैं. इसे मुख्य रूप से झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में रहने वाले जनजाति समुदायों द्वारा अपनाया जाता है. सरना जनजाति पेड़ों, पहाड़ों, नदियों और सूर्य जैसे प्राकृतिक तत्वों को पूजनीय मानते हैं. यही कारण है कि सरना धर्म को अक्सर प्रकृति-पूजक या पर्यावरण-संरक्षक धर्म भी कहा जाता है.
बीते कुछ वर्षों में, सरना धर्म के लिए एक अलग ‘धर्म कोड’ की मांग ने जोर पकड़ा है. समुदाय चाहता है कि भारत की जनगणना में इसे एक स्वतंत्र धर्म के रूप में मान्यता मिले, ताकि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को संरक्षित किया जा सके.
कितने लोग मानते हैं सरना धर्म?
2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में लगभग 40.75 लाख लोगों ने अपना धर्म सरना बताया था. राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा से जुड़े धर्मगुरु बंधन तिग्गा का कहना है कि झारखंड में आज सरना धर्म को मानने वालों की संख्या 62 लाख के करीब है. उन्होंने यह भी बताया कि रांची महानगर सरना प्रार्थना सभा की ओर से एक विशेष अभियान चलाया गया है, जिसके अंतर्गत झारखंड में रहने वाले सरना जनजातीय की अलग से गिनती की जा रही है.
बंधन तिग्गा के मुताबिक, देश के करीब 21 राज्यों में जनजातीय समुदायों ने जनगणना में अपना धर्म सरना के रूप में दर्ज किया था. उनका मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर समुदाय के लोग यदि एक समान आस्था का पालन करते हैं, तो उन्हें भारत की जनगणना में एक अलग धार्मिक पहचान अवश्य मिलनी चाहिए.
क्यों हो रही सरना धर्म कोड की मांग?
आधिकारिक जनगणना आंकड़ों के अनुसार, 2011 में झारखंड में कुल जनजातीय आबादी करीब 86 लाख 45 हजार थी. जनजातियों का कहना है कि 1941 की जनगणना तक उनके लिए एक अलग धर्म कॉलम मौजूद था, लेकिन 1951 से यह कॉलम हटा दिया गया, जिसके बाद से वे ‘अन्य धर्म’ की श्रेणी में डाले जाने लगे. इस बदलाव को समुदाय के लोग अपनी धार्मिक पहचान के मिटने जैसा मानते हैं.
2011 की जनगणना में जिन लोगों का धर्म छह मान्यता प्राप्त धर्मों (हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन) से मेल नहीं खाता, उनके पास ‘अन्य’ कॉलम चुनने का विकल्प था. इस कॉलम में करीब 50 लाख लोगों ने खुद को ‘सरना’ धर्म का अनुयायी बताया, जिनमें से 40.75 लाख केवल झारखंड से थे, बाकी ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से आए. यही वजह है कि जनजातीय संगठनों की मांग है कि सरना धर्म को जनगणना में एक अलग धर्म कॉलम के रूप में मान्यता मिले.
जेएमएम क्यों कर रही सरना धर्म कोड का समर्थन
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की सरकार बढ़ चढ़ कर सरना को एक अलग धर्म का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. पार्टी महासचिव सह प्रवक्ता विनोद पांडेय ने कहा कि सरना धर्म कोड आदिवासी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान का सवाल है, जिसे लेकर जेएमएम शुरू से गंभीर रहा है.
इसे लेकर विनोद पांडेय ने आगामी 27 मई को राज्य व्यापी धरना प्रदर्शन करने की घोषणा की. 11 नवंबर 2020 को विधानसभा सत्र में, जनगणना 2021 में ‘सरना’ को एक अलग धर्म के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था. यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन इसपर कोई फैसला नहीं लिया गया. इस प्रस्ताव को जेएमएम, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी वाली सरकार ने लाया था. इसके अलावा नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड ट्राइब्स (NCST) ने भी सरना धर्म को अलग दर्जा देने की बात कही है.
क्या है केंद्र सरकार का तर्क?
सरना कोड को लेकर केंद्र सरकार अब तक इस मांग पर कोई स्पष्ट रुख नहीं दिखा रही है. उनका कहना है कि अगर एक बार सरना धर्म कोड को स्वीकृति दे दी जाती है, तो भविष्य में अन्य जातीय, क्षेत्रीय या सांस्कृतिक समूहों से भी ऐसी मांगें उठ सकती हैं. इससे जनगणना की प्रक्रिया जटिल हो सकती है और धार्मिक वर्गीकरण में अस्थिरता आ सकती है. वहीं दूसरी ओर से धर्मांतरण पर जोर देने वाली संस्थाओं के लिए उनपर फोकस करना आसान हो सकता है.
ईसाई मिशनरियों की है दिलचस्पी
राज्य में सरना कोड की मांग को लेकर मिशनरी भी ज्यादा दिलचस्पी और दखलंदाजी करने का कोई मौका नहीं चूकतीं. चर्च ऑफ इंडिया छोटानागपुर धर्मप्रांत के बिशप नोएल हेम्ब्रम ने कहा कि सरना धर्म कोड लागू होने के बाद भी अगर कोई जनजातीय समाज के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार करते हैं तो उसे ईसाई ही माना जाएगा.
मांडर के विधायक बंधु तिर्की सरना धर्म कोड के मुद्दे पर अपना तर्क दिया कि जनजातियों की अलग पहचान है और यह किसी भी मत को मानने से प्रभावित नहीं होता. चर्च का हवाला देकर और ईसाई मिशनरियों पर दोष मढकर इस मुद्दे को डाइवर्ट नहीं किया जा सकता.
झारखंड के प्रमुख आदिवासी समुदाय
झारखंड में कुल 32 प्रमुख जनजातीय समुदाय के लोग रहते हैं. इनमें संताल, मुंडा, उरांव, खड़िया, गोंड, कनवार, कोल, सावर, असुर, बैगा, बंजारा, बथूड़ी, बेदिया, बिंझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक बड़ाईक, गोराइत, हो, करमाली, खरवार, खोंड, किसान, कोरा, कोरबा, लोहरा, महली, माल पहाड़िया, पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया और भूमिज प्रमुख जनजातियां हैं.