झारखंड के लातेहार जिले में एक बार फिर से नक्सलवाद का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. यहां नक्सलियों ने बीते 1 हफ्ते में दो बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है. पहली घटना गुरुवार (1 मई) की है, जहां महुआटांड़ थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी थी. वहीं दूसरी घटना शनिवार (3 मई) की है, जहां देर रात नक्सलियों ने लातेहार के चंदवा थाना क्षेत्र में छह गांड़ियों को आग के हवाले कर दिया था.
लातेहार पहले कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था. लेकिन कुछ वर्षों की शांति के बाद फिर से यहां नक्सलियों का उत्पाद लौटता दिखाई दे रहा है. तो आइए जानते हैं आखिर नक्सली क्यों लातेहार को टारगेट बना रहा है? इस तरह की पिछली कितनी घटनाएं हुई? अभी भी झारखंड में कौन-कौन से जिले नक्सल प्रभावित हैं? पहले की तुलना में कितना कम हुआ नक्सलवाद?
लातेहार में क्यों बढ़ता जा रहा नक्सलवाद?
लातेहार, पलामू और गढ़वा झारखंड के ये तीन जिले हैं, जो नक्सलवादी संगठनों के लिए कई सालों से आर्थिक रूप से बेहद अहम रहे हैं. लातेहार में कोयला और बीड़ी पत्ता का कारोबार होता है. दोनों ही कारोबार में नक्सलियों को बड़ी रकम लेवी (बकाया ऋण को चुकाने के लिए दी गई संपत्ति) के रूप में मिलती है.
झारखंड पुलिस इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधित नक्सली संगठन लातेहार, पलामू और गढ़वा की इलाके में प्रत्येक वर्ष बीड़ी पत्ता से 25-30 करोड़ रुपए की लेवी भी वसूल लेते हैं. वर्ष 2021 के बाद से लेवी के रकम में गिरावट आई है. पलामू में 30-35 लाख बीड़ी पत्ता की तुड़ाई होती है. नक्सली संगठन भाजपा महाबादी और टीएसपीसी 60-70 रुपये प्रति बैग, वहीं अन्य नक्सली संगठन 35-40 प्रति बैग के हिसाब से लेवी वसूलते हैं.
कोयला कारोबार में प्रति टन लेवी तय होता है. वर्तमान समय में माओवादियों की पकड़ जरूर कमजोर हुई है, लेकिन लेवी की वसूली पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. अंतर बस इतना है कि पहले छोटे कामों पर भी नजर रखी जाती थी, अब बड़े ठेकों, खदानों और सप्लाई से ही लेवी वसूली जा रही है. यही कारण है कि नक्सली संगठन रकम पर कब्जा जमाने के लिए हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.
लातेहार में कब-कब हुए नक्सली हमले?
जनवरी 2024 में लातेहार के हेरहंज थाना क्षेत्र में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई थी. इसमें पुलिस ने एक अमेरिकी राइफल, दो अन्य बंदूकें, 96 कारतूस, नक्सलियों की वर्दी और पर्चे बरामद की थी. साथ ही दो नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया था.
20 नवंबर को जेजेएमपी के उग्रवादियों ने चार हाइवा को आग के हवाले कर दिया था. 24 नवंबर को अमन साव के गुर्गे द्वारा AK-47 के एक कोयले के ट्रक पर फायरिंग की गई. इसी महीने में ही बालूमाथ स्थित कोयला साइडिंग पर भी फायरिंग की गई. पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि ये घटनाएं सिर्फ पैसे वसूलने के लिए हुई थी.
कौन-कौन से जिले नक्सल प्रभावित?
झारखंड में नक्सलवाद की गहरी जड़ें रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाए गए संयुक्त अभियानों और रणनीतियों के तहत बीते एक दशक में नक्सली हिंसा में लगाम लगाया गया. लेकिन यह जड़ से खत्म नहीं हुआ. ऐसा क्यों? आइए समझते हैं.
झारखंड में 29% वन क्षेत्र, पहाड़ी इलाके और खनिज संपदा होने के कारण यह समस्या और भी जटिल हो गई है. विशेष रूप से सरायकेला-खरसावां, पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार, पलामू और गढ़वा जैसे इलाके हैं, जहां आज भी नक्सलवाद सक्रिय है. इन जिलों में नक्सली हिंसा, लेवी वसूली, सुरक्षाबलों पर हमले जैसी कई घटनाएं लगातार सामने आती रही है.
खुफिया एजेंसियों के रिपोर्ट के अनुसार इन इलाकों के जंगलों में भाकपा (माओवादी), सेंट्रल कमेटी और तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (TSPC), झारखंड जनमुक्ति परिषद (JJMP), पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (PLFI) और अमन साव गिरोह के बड़े नक्सली डेरा जमाए हुए हैं. पलामू और गढ़वा में बेतला राष्ट्रीय उद्यान और घने जंगलों में नक्सली छुपे रहते हैं. लातेहार में बीड़ी पत्ता तुड़ाई और कोयला परिवहन के कारण नक्सलियों के लिए आर्थिक दृष्टि के लिए अहम माना जाता है.
पुलिस और सुरक्षा बलों की बड़ी सफलता
पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल में नक्सलियों को खत्म करने में पुलिस और सुरक्षा बलों को सफलता हाथ लगी है. वर्ष 2024- 2025 के बीच 244 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है. जिसमें एक सैक सदस्य, दो जोनल कमांडर, 6 सब जोनल कमांडर और 6 एरिया कमांडर रैंक के नक्सली शामिल हैं.
वहीं, 24 नक्सलियों ने सरेंडर भी किया है. इसमें 4 जोनल कमांडर और 1 सब जोनल कमांडर, 3 एरिया कमांडर और 01 सदस्य शामिल हैं. इसके अलावा 7 से ज्यादा नक्सलियों को एन्काउंटर में मारा गया है.
नक्सल मुक्त जिलें
पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की योजनाएं, पुलिस की कार्रवाई और सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत से झारखंड के कई जिलों के नक्सल मुक्त बनाया गया हैं. इसमें रांची, दुमका, देवघर, गुमला, सिमडेगा , बोकारो, सरायकेला-खरसावां, चतरा और खूंटी जैसे जिलों में नक्सलवाद पर काबू पाया गया है.