झारखंड में जनजातियों की जनसंख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण आई गिरावट एक गंभीर सामाजिक और सांस्कृतिक समस्या बनी हुई है. खासकर जनजाती महिलाओं की घटती जनसंख्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि राज्य में धीरे-धीरे जनजातियों का अस्तित्व मिट जाएगा. इसके पीछे का मुख्य कारण अवैध बांग्लादेशी हैं, जो राज्य में फर्जी तरीके से प्रवेश कर जनजातीय महिलाओं को टारगेट कर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे हैं.
यह घटना मुख्य रूप से जनजातीय बहुल क्षेत्रों, जैसे कि संताल परगना, गढ़वा, लोहरदगा और खूंटी में देखी जा रही है. इस प्रक्रिया में बांग्लादेशी महिलाओं को धार्मिक प्रलोभन देकर उनका विश्वास जीतते हैं और उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं. ऐसा करके घुसपैठियों का मुख्य उद्देश्य उनकी भूमि पर कब्जा करना होता है. इसके अलावा उन्हें धमकी दी जाती है कि यदि उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं कराया तो उनका जीवन खतरे में पड़ सकता है. सरकारी आंकड़ों की बात करें तो, 1951 में जनजातिय जनसंख्या 44.67% थी, जो 2011 में घटकर 28.11% रह गई.
महिलाओं का धर्मांतरण कराने का कैसे शुरू होता है षड्यंत्र?
राज्य में जनजाति बहुल इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा महिलाओं का धर्मांतरण कराने की साजिश वर्षों से जारी है. .यहां घुसपैठिए सबसे पहले गरीब और हाशिए पर रह रही जनजातीय महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं. ये महिलाएं अक्सर शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा की तलाश में होती हैं, जिससे उन्हें आर्थिक और भावनात्मक रूप से बहकाना आसान होता है. घुसपैठिए स्थानीय नागरिक की तरह स्थानीय भाषा सीख लेते हैं और खुद को ग्रामीण संस्कृति के अनुरूप ढाल लेते हैं. इसके बाद प्रेम संबंधों या झूठी शादी के वादें कर महिलाओं के भरोसे को जीत लेते हैं.
शादी के बाद, महिलाओं पर धीरे-धीरे धर्म बदलने का दबाव डालते हैं. कभी-कभी इसे प्यार से तो कभी डरा धमका कर धर्मांतरण कराया जाता है. धर्म परिवर्तन के बाद महिला की सामाजिक पहचान बदल जाती है और वह दूसरे समुदाय से जुड़ जाती हैं.
इन विवाहों के जरिए भूमि और संपत्ति पर दावा किया जाता है. चूंकि झारखंड के जनजाति इलाकों में जमीनें सिर्फ जनजातियों के नाम पर हो सकती हैं. इस कारण बड़ी चालाकी से घुसपैठिए उन जमीनों पर अवैध कब्जा कर लेते हैं.
कौन सी महिलाएं हो रही इस षड्यंत्र का शिकार?
बांग्लादेशी घुसपैठिए सुनियोजित तरीके से जनजाति समुदाय की महिलाओं को निशाना बना रहे हैं.
1. आर्थिक रूप से पिछड़ी महिलाएं- झारखंड के कई इलाकों में आज भी बड़ी संख्या में जनजातीय परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. आर्थिक तंगी होने के कारण महिलाएं शिक्षा से वंचित रह जाती हैं. बांग्लादेशी इन्हीं जरूरतमंद महिलाओं की छोटी-छोटी आर्थिक मदद, रोजगार के वादे या प्रेमसंबंध के झूठे सपने दिखाकर अपने जाल में फांस लेते हैं.
2. अनाथ और सामाजिक रूप से अलग-थलग महिलाएं- जो महिलाएं अनाथ हैं, या जो किसी कारणवश पने समाज से कट गई हैं (जैसे विधवा, परित्यक्ता), उन्हें घुसपैठिए आसानी से अपना टारगेट बनाते हैं. ऐसे में ये लोग सहारे और अपनापन देने के बहाने संपर्क साधते हैं और फिर बहला फुसलाकर शादी और धर्म परिवर्तन कराते हैं.
3. कम उम्र की लड़कियां और किशोरियां- 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियां इस षड्यंत्र में आसानी से फंस जाती हैं. प्रेम-जाल (लव जिहाद) बिछाकर ये घुसपैठिए लड़कियों को भरोसा दिलाते हैं, फिर शादी का झांसा देकर उनकी जिंदगी की दिशा बदल देते हैं.
4. सीमा और दुर्गम क्षेत्र की महिलाएं- पश्चिमी सिंहभूम, साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका और सिमडेगा जैसे जिले में जनजातीय जनसंख्या अधिक और सरकार का नियंत्रण कम है. वहां की महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. घुसपैठिए यही इलाके शिकार के लिए आदर्श मानते हैं.
5. अशिक्षित और कानूनी जानकारी से वंचित महिलाएं- अशिक्षित और कम पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने अधिकारों से अनजान होती है और साथ ही धर्मांतरण या विवाह के कानूनी पहलुओं को भी नहीं समझतीं.