झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ देश का एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है. विशेष रूप से संथाल परगना (पाकुड़, गोड्डा, साहिबगंज, जामताड़ा, साहिबगंज और देवघर) सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र हैं. इससे राज्य की डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी परिवर्तन) ही बदल गई है. बीते कुछ दशकों से इस क्षेत्र में जनजातियों की संख्या घटती जा रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1951 में जनजातिय जनसंख्या 44.67% थी, जो 2011 में घटकर 28.11% रह गई. कुछ रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि संथाल परगना में 1951 में मुस्लिम जनसंख्या 22.73% थी, जो 2024 में बढ़कर लगभग 40% के लगभग हो गई है. विशेष रूप से पाकुड़ और साहिबगंज जिले हैं. जहां मुस्लिमों की जनसंख्या 35% तक बढ़ी.
कैसे पश्चिम बंगाल से झारखंड में प्रवेश कर रहे बांग्लादेशी?
पश्चिम बंगाल के जरिए बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में प्रवेश कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल की सीमा बांग्लादेश से करीब 2216 किलोमीटर लंबी है. सीमा का बड़ा हिस्सा खेत, नदियां, जंगल, गांवों और बीहड़ इलाकों से होकर गुजरता है. इसी के जरिए बांग्लादेशी अवैध तरीके से पश्चिम बंगाल में घुस रहे हैं. घुसपैठ के तुरंत बाद सबसे पहला काम दलालों के जरिए स्थानीय पहचान बनवाना होता है. पश्चिम बंगाल की सीमा झारखंड के संथाल परगना से लगा हुआ है. संथाल परगना में साहिबगंज, पाकुड़, जामताड़ा, गोड्डा, देवघर जीले बंगाल की से जुड़ते हैं. अब घुसपैठिए रेल मार्ग, सड़क मार्ग और नदी मार्ग से झारखंड में घुसते हैं. ये लोग झारखंड में खुद को बंगाल या असम से आए मजदूर बताते हैं. बंगाली भाषा बोलने के कारण किसी को शक भी नहीं हो पाता है. धार्मिक और सामाजिक तौर पर स्थानीय मुस्लिमों से मेल खाते हैं. ये लोग बसने के लिए मुस्लिम बहुल इलाकों (पाकुड़, साहिबगंज, जामताड़ा) को चुनते हैं.
कैसे बनवाते है फर्जी दस्तावेज?
स्थानीय पंचायत कर्मियों, जनसेवकों, दलालों और अन्य अधिकारियों की मदद से घुसपैठिए अपने फर्जी दस्तावेज बनवाते हैं. फर्जी जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर आधार कार्ड और फार्म 6 भरकर वोटर आईडी में भी अपना नाम दाखिल करवा लेते हैं. साथ ही राशन कार्ड, बीपीएल कार्ड बनवाकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं. स्थानीय दलालों, भू-माफियाओं की मदद से खाली जमीनों पर स्थायी झुग्गियां बसाते हैं. एक स्टडी के अनुसार मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में वोटर लिस्ट में 123% तक की वृद्धि हुई. झारखंड में 120 से अधिक ऐसे वेबसाइट्स हैं जो नकली दस्तावेज तैयार कर रही हैं. इसके अलावा कुछ स्थानीय एजेंट और बिचौलिये पैसे लेकर घुसपैठियों के पहचान पत्र बना रहे हैं.
जनजातीय महिलाओं को बनाया जा रहा निशाना
बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा जनजातीय महिलाओं को लालच देकर और पहचान छुपाकर शादी करने की कई घटनाएं सामने आई हैं. इस विवाहो के जरिए उनकी भूमि पर कब्जा किया जा रहा है और स्थानीय पहचान प्राप्त किया जा रहा है.
ये घुसपैठिए ऐसी महिलाओं को निशाना बनाते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हों. जनजातीय परिवारों को कर्ज में फंसा कर उनकी बेटियों से शादी करते हैं. खासकर पहाड़िया जनजाति महिलाएं (साहिबगंज, बोरियो, बरहेट, तालझारी और पतना) रडार पर हैं.
कई युवक खुद को ईसाई या जनजातीय बताकर लड़की और उसके परिवार से संपर्क करते हैं. शादी के बाद सच्चाई सामने आती है. कुछ मामले लव जिहाद के आए हैं.
जनजातीय महिलाओं का धर्मांतरण
घुसपैठियों द्वारा महिलाओं से विवाह के बाद धार्मिक कन्वर्जन (धर्मांतरण) कराने की भी कई घटनाएं सामने आई हैं. इसका मकसद जनजातीय समाज की संस्कृति, भूमि और पहचान को धीरे-धीरे करना है. पहाड़िया और संथाल महिलाओं को नमाज पढ़ने, रोजा रखने और धार्मिक परंपराएं बदलने के लिए मजबूर किया जाता है.
सरकारी जनगणना (2011) और मीडिया रिपोर्ट्स व इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर आंकड़े:
जिला 2011 में मुस्लिम जनसंख्या (%) 2024 का अनुमानित प्रतिशत अनुमानित वृद्धि दर(%)
पाकुड़ 32% 38% 6%
साहिबगंज 30% 35% 5%
जामताड़ा 27% 33% 6%
देवघर 24% 30% 6%
गोड्डा 22% 28% 6%
कैसे ये मुद्दा गरमाया?
कई स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूचना का अधिकार (RTI) के माध्यम से घुसपैठ से जुड़े फर्जी दस्तावेज बनाने की घटनाओं का खुलासा किया.
गोड्डा के बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि झारखंड में मुस्लिम जनसंख्या 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि आदिवासियों की संख्या में 17 प्रतिशत की कमी आई है. आंकड़े बताते हुए उन्होंने कहा कि 1951 संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 45% थी, जो 2011 की जनगणना में 28% हो गई.
निशिकांत दुबे ने कहा, “दूसरी ओर मुस्लिमों की जो संख्या 9% थी और वह अब 24% हो गई है. यह फर्क बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के कारण हुआ है. परिसीमन में इसका ध्यान रखना चाहिए.”