रांची: राजधानी रांची के चुटिया में स्थित वर्ष 400 वर्ष प्राचीन राम मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि भगवान श्रीराम के चरणों से पावन भूमि भी मानी जाती है. यह मंदिर रामभक्तों की आस्था का केंद्र है, जिसे स्थानीय लोग अयोध्या के समकक्ष मानते हैं.
मंदिर की विशेषता: चरण पादुका स्थापित
चुटिया राम मंदिर की विशेषता यह है कि यहां श्रीराम की चरण पादुका स्थापित है. मान्यता है कि जब वनवास के लिए श्रीराम निकले थे, तो उन्होंने चुटिया में कुछ समय बिताया था. इसी कारण यह भूमि पवित्र तीर्थ स्थल मानी जाती है.
इतिहास में ये भी दर्ज है कि चैतन्य महाप्रभु भी इस मंदिर में आए थे और यहां विराम किया था. भक्त बताते हैं कि यहां का वातावरण आज भी भक्तिरस से ओतप्रोत रहता है.
रामभक्तों की आस्था और अयोध्या आंदोलन से जुड़ाव
1990-1992 के अयोध्या आंदोलन में चुटिया के भक्तों ने भी भगवान राम के आदेश के रूप में कारसेवा में भाग लिया था.
मंदिर का इतिहास: नागवंशी राजाओं से जुड़ा है संबंध
ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, मंदिर स्थल में कभी नागवंशी राजा रघुनाथ शाहदेव का महल हुआ करता था. ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय भक्त के सपने में मंदिर निर्माण का आदेश मिला था. इसके बाद 1687 में पत्थर से भव्य मंदिर का निर्माण हुआ.
मंदिर में खास पर्व का आयोजन
किसी खास पर्व जैसे रामनवमी, दीपावली, नवरात्र के अवसर पर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले इस मंदिर को खास तरीके से सजाया गया था.
रांची के अन्य प्रसिद्ध राम मंदिर
- चुटिया राम मंदिर के अलावा भी झारखंड में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. जिसमें रांची के निरवांपुर में स्थित तपोवन मंदिर है. इसी मंदिर से सबसे पहले श्रीराम की झांकी निकाली गई थी. यहां पिछले 95 सालों से एक विशेष झंडा है और इसकी पूजा के बिना जुलूस का शुभारंभ नहीं होता.
- रांची में स्थित नेपाल हाउस के पास का प्राचीन राम मंदिर धार्मिक स्थल है. ओवरब्रिज से नेपाल हाउस की ओर जाते समय दिखने वाला यह मंदिर रामनवमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. यह राम मंदिर वर्षों से रांचीवासियों की गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है. मंदिर में भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाएं स्थापित हैं.

- इसके अलावा बोकारो में भी ऐतिहासिक राम मंदिर स्थित है. मंदिर की स्थापना 1967 में एक मेहनतकश पंडित परमानंद त्रिपाठी जी द्वारा की गई थी. हालांकि बाद में यह मंदिर 1970 के बाद अस्तित्व में आया. मंदिर में लोग केवल देश से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी हैं. परिसर में कई देवी-देवता की मूर्तियां स्थापित की गई है. मंदिर का पौराणिक महत्व यह है कि यह भगवान राम के परम भक्त हनुमान की तपस्थली कहा जाता है, इसलिए यहां एक धार्मिक और सांस्कृतिक वातावरण का अहसास होता है.
