झारखंड के लोहरदगा जिले के बरही चटकपुर गांव में हर साल होली के मौके पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसकी चर्चा अब दूर-दूर तक होती है. यहां ‘ढेला मार होली’ खेली जाती है, जिसमें गांव के लोग एक विशेष खंभे को उखाड़ने की कोशिश करते हैं और इसी दौरान मिट्टी के ढेलों (पत्थरों) की बारिश होती है.
क्या है परंपरा?
परंपरा के अनुसार, होलिका दहन के दिन पूजा के बाद गांव के पुजारी मैदान में एक खंभा गाड़ते हैं. अगले दिन, गांव के सभी लोग इस खंभे को उखाड़ने के लिए मैदान में इकट्ठा होते हैं. इस दौरान लोगों पर मिट्टी के ढेले (छोटे पत्थर) फेंके जाते हैं. मान्यता है कि जो व्यक्ति पत्थरों की परवाह किए बिना खंभे को उखाड़ने की हिम्मत करता है, उसे सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह परंपरा सत्य के मार्ग पर चलने का प्रतीक मानी जाती है.
कैसे हुई थी परंपरा की शुरुआत?
गांव के बुजुर्ग मनोरंजन प्रसाद के अनुसार, यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. पहले, गांव आने वाले दामादों के साथ मजाक के तौर पर यह परंपरा शुरू हुई थी. गांव के लोग दामादों को खंभा उखाड़ने की चुनौती देते थे और मजाक में उन पर मिट्टी के ढेले फेंकते थे. धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे गांव का हिस्सा बन गया.
अब दूर-दूर से आते हैं लोग
बीते कुछ वर्षों में ‘ढेला मार होली’ की लोकप्रियता बढ़ी है. अब इसे देखने के लिए लोहरदगा और आसपास के जिलों से भी लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. हालांकि, इस खेल में भाग लेने की अनुमति सिर्फ गांव के लोगों को ही होती है.
खूंटा उखाड़ने और ढेला फेंकने की इस परंपरा के पीछे कोई रंजिश नहीं होती, बल्कि यह खेल भाईचारे और एकता का संदेश देता है. यह होली केवल रंगों का नहीं, बल्कि साहस, परंपरा और प्रेम का भी उत्सव है.