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Opinion: International Women’s Day: इतिहास, संघर्ष और आज की सच्चाई

हम सभी जानते हैं कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन इस दिन की शुरुआत कब और कैसे हुई? इसके पीछे का कारण क्या था? इस बारे में बहुत कम लोग बता सकते हैं. विकिपीडिया के अनुसार, सबसे पहला महिला दिवस 28 फरवरी 1909 को अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी द्वारा न्यूयॉर्क में मनाया गया था.

News Desk by News Desk
Mar 8, 2025, 01:00 pm GMT+0530
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (फोटो- सोशल मीडिया)

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हम सभी जानते हैं कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन इस दिन की शुरुआत कब और कैसे हुई? इसके पीछे का कारण क्या था? इस बारे में बहुत कम लोग बता सकते हैं. विकिपीडिया के अनुसार, सबसे पहला महिला दिवस 28 फरवरी 1909 को अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी द्वारा न्यूयॉर्क में मनाया गया था.

1910 में, रूसी क्रांति के जनक व्लादिमीर लेनिन ने कोपेनहेगन में हुई समाजवादी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय परिषद में घोषणा की कि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाएगा. तब से, समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा वाले देशों में यह दिन मनाया जाने लगा. इसके इतिहास पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि यह दिन महिलाओं के अधिकारों के लिए उनके सामूहिक संघर्ष को दर्शाने के लिए मनाया जाता था. विशेष रूप से, कम्युनिस्ट विचारधारा की महिलाएं और पश्चिमी नारीवादी संगठन इस दिन को अपने आंदोलनों के माध्यम से मनाते थे.

महिला दिवस मनाने वालों में मुख्य रूप से समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा के लोग शामिल थे. उनके प्रयासों से यह दिवस पश्चिमी दुनिया में भी लोकप्रिय हुआ और 1975 से इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाने लगा. 2001 में इससे संबंधित एक वेबसाइट भी बनाई गई, और कॉर्पोरेट जगत में भी इस दिन को मनाया जाने लगा. कॉर्पोरेट क्षेत्र की भागीदारी के कारण इस दिवस का मूल उद्देश्य, जो कि सामाजिक सुधार था, धीरे-धीरे व्यावसायिक रूप लेने लगा. जिस प्रकार मदर्स डे और फादर्स डे का व्यावसायीकरण हुआ, उसी प्रकार इस दिन का भी व्यावसायीकरण हो गया.

यह दिवस अफगानिस्तान, अर्मेनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, कंबोडिया, चीन, क्यूबा, जॉर्जिया, जर्मनी, कजाकिस्तान, नेपाल, रूस, ताजिकिस्तान, युगांडा, यूक्रेन, उज़्बेकिस्तान, जाम्बिया आदि देशों में सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है. भारत में भी यह दिन मनाया जाने लगा, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि इसकी आवश्यकता वास्तव में है या नहीं?

भारत में स्त्रियों का सम्मान और उनकी स्थिति

हमारे वेद-उपनिषदों में महिलाओं को स्वतंत्रता और सम्मान दिया गया था. हमारी संस्कृति में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, काली आदि की पूजा पुरुष देवी-देवताओं के साथ की जाती है. महाभारत और रामायण में गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधती जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है. तमिल महाकाव्यों में कण्णगी नामक स्त्री को देवी के रूप में पूजा गया। बौद्धकाल में भी महिलाएँ भिक्षुणी बनकर आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ीं.

स्वतंत्रता के बाद भारतीय महिलाओं ने शिक्षा, राजनीति और समाज के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त की. हमारे देश में एक महिला प्रधानमंत्री और दो महिला राष्ट्रपति भी हुईं, जबकि अमेरिका, जिसने महिला अधिकारों के लिए बड़े आंदोलन किए, वहाँ आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी. इससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण की जड़ें बहुत गहरी हैं.

महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ

आज के दौर में महिला दिवस मनाने का अर्थ केवल औपचारिक आयोजन तक सीमित हो गया है. वास्तविकता यह है कि जिन महिलाओं को सशक्त बनाने की आवश्यकता है, वे इस दिवस से वंचित रहती हैं. पश्चिमी विचारधारा का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि कुछ महिलाएँ यह भी नहीं समझ पातीं कि उनके नाम पर उनका शोषण हो रहा है.

“माई बॉडी, माई चॉइस” के नाम पर महिलाओं को अशोभनीय और असुविधाजनक वस्त्र पहनने के लिए प्रेरित किया जाता है. सौंदर्य प्रसाधनों, फैशन और सोशल मीडिया के माध्यम से महिलाओं को आकर्षक और आत्मविश्वासी दिखने का दबाव डाला जाता है. इंस्टाग्राम, टिकटॉक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं को अपनी निजी और सार्वजनिक छवि को “परफेक्ट” बनाने के लिए मजबूर किया जाता है. यह भी एक प्रकार का व्यावसायीकरण और महिलाओं के वस्तुकरण का हिस्सा है.

जंक फूड, फैशनेबल डाइट प्लान, सिगरेट और शराब के सेवन को स्वतंत्रता का प्रतीक बना दिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि स्वास्थ्य समस्याएँ, खासकर प्रजनन संबंधी समस्याएं, बढ़ने लगी हैं. क्या यही महिला सशक्तिकरण है?

महिला सशक्तिकरण का अर्थ केवल पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझते हुए स्वतंत्र निर्णय लेना है. महिलाओं को केवल कानूनी सहूलियतें देने से सशक्तिकरण नहीं होता. कई मामलों में, कुछ महिलाओं ने घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग कर अपने पतियों को प्रताड़ित किया, जिसके परिणामस्वरूप कई पुरुषों ने आत्महत्या कर ली. सशक्तिकरण का अर्थ है संतुलित और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना.

भारतीय संस्कृति में महिलाओं की भूमिका

हमारी संस्कृति में नारी को परिवार की रीढ़ माना जाता है. परिवार एक मजबूत समाज की नींव होती है, और परिवार की स्थिरता महिला की समझदारी और सहनशीलता पर निर्भर करती है. भारतीय संस्कृति में “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ” कहा गया है, जिसका अर्थ है – जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है.

स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका गए थे, तो वहां की महिलाओं ने उन्हें बहुत सहयोग दिया. स्वामी जी हर महिला को “मां” कहकर संबोधित करते थे. उन्होंने कहा था कि भारतीय संस्कृति में नारी को माता के रूप में देखा जाता है, और यही हमारी संस्कृति की विशेषता है. पश्चिमी देशों में “मॉम” या “मम्मी” शब्द में वह शक्ति नहीं है जो “मां” शब्द में है. यही कारण है कि भारत में महिला दिवस मनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी संस्कृति में नारी को हमेशा से सम्मान प्राप्त रहा है.

महिला दिवस पर पुनर्विचार की आवश्यकता

आज के समय में महिला दिवस केवल औपचारिकता और व्यावसायिक आयोजन बनकर रह गया है. क्या इस दिन से उन महिलाओं को कोई लाभ मिलता है जो वास्तव में संघर्ष कर रही हैं? क्या पाश्चात्य स्त्रीवाद को अपनाना ही सशक्तिकरण है?

महिला सशक्तिकरण का अर्थ है – अपने अधिकारों और कर्तव्यों को पहचानना, अपने जीवन के निर्णय खुद लेना और उन निर्णयों की जिम्मेदारी निभाना. यह आवश्यक नहीं कि हर चीज पश्चिमी देशों की नकल हो. भारतीय महिलाओं को अपने मूल्यों, संस्कृति और आत्मसम्मान को बनाए रखते हुए सशक्त होने की दिशा में सोचना चाहिए। जब सशक्तिकरण का सही अर्थ समझा जाएगा, तो साल का हर दिन महिला दिवस होगा.

डॉ. अपर्णा लळिंगकर

Tags: International Women's DayInternational Women's Day 2025Women EmpowermentWomen's Day
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